तार से बने त्रिज्या $a$ के छोटे वृत्ताकार वलय को त्रिज्या $b$ के एक बृहत् वृत्ताकार वलय के केन्द्र पर रखा गया है। दोनों वलय एक ही समतल में हैं। त्रिज्या $b$ के बाह्य वलय में एक प्रत्यावर्ती धारा $I=I_{0} \cos (\omega t)$ प्रवाहित की जाती है। त्रिज्या $a$ वाले आन्तरिक वलय में प्रेरित विद्युत वाहक बल होगा
$\frac{{\pi {\mu _0}{I_0}}}{2}.\frac{{{a^2}}}{b}\omega \,\sin \,\left( {\omega t} \right)$
$\frac{{\pi {\mu _0}{I_0}}}{2}.\frac{{{a^2}}}{b}\omega \,\cos \,\left( {\omega t} \right)$
$\pi {\mu _0}{I_0}\,\frac{{{a^2}}}{b}\omega \,\sin \,\left( {\omega t} \right)$
$\frac{{\pi {\mu _0}{I_0}{b^2}}}{a}\,\omega \,\cos \,\left( {\omega t} \right)$
प्राथमिक और द्वितीयक परिपथों में अन्योन्य प्रेरकत्व का मान $0.5 \,H$ है। प्राथमिक और द्वितीयक परिपथों के प्रतिरोध क्रमश: $20 \,\Omega$ और $5 \,\Omega$ हैं। द्वितीयक परिपथ में $0.4$ ऐम्पियर की धारा उत्पé करने के लिये यह आवश्यक है कि प्राथमिक परिपथ में निम्न दर से धारा परिवर्तित की जाये......... ऐम्पियर/सैकण्ड
दो कुण्डलियाँ पास-पास रखी हुई हैं। दोनों कुण्डलियों के बीच अन्योन्य प्रेरकत्व निर्भर करता है
${R_1}$ व ${R_2}$ त्रिज्या के दो वृत्तीय चालक लूप, जिनके केन्द्र एक ही बिन्दु पर हैं, एक ही तल पर रखे हैं। यदि ${R_1} > > {R_2}$, तो उनके बीच अन्योन्य प्रेरकत्व $M$ अनुक्रमानुपाती होगा
$\mathrm{R}_{1}$ तथा $\mathrm{R}_{2}$ त्रिज्याओं की दो चालकीय वृत्तीय लूप एक तल में समकेन्द्रित रखी है। यदि $\mathrm{R}_{1}\,>\,>\,\mathrm{R}_{2}$ तो उनके मध्य पारस्परिक प्रेरकत्व $'\mathrm{M}'$ समानुपाती होता है :
एक छोटी परिनालिका (जिसकी लम्बाई $\ell$ तथा त्रिज्या $r$ है और प्रति लम्बाई $n$ फेरें हैं), जो कि समअक्षीय बहुत लम्बी परिनालिका (जिसकी प्रति लम्बाई में $N$ फेरें है और लम्बाई $L$ एवं त्रिज्या $R$, जहाँ $R > r$ हैं) के अंदर इसके अक्ष पर रखी जाती है। छोटी परिनालिका में धारा । प्रवाहित होती है। सही तथ्य का चुनाव कीजिए।