एक आवेशित कण जिस पर $1\, \mu C$ का आवेश है $(2 \hat{ i }+3 \hat{ j }+4 \hat{ k })\, ms ^{-1}$ वेग से चल रहा है। यदि कण के आस पास $(5 \hat{ i }+3 \hat{ j }-6 \hat{ k }) \times 10^{-3} \,T$ का चुम्बकीय क्षेत्र हो तो कण पर लगने वाला बल $\overline{ F } \times 10^{-9} \,N$ है। $\overline{ F }$ वेक्टर है।
$-0.30 \hat{ i }+0.32 \hat{ j }-0.09 \hat{ k }$
$-300 \hat{ i }+320 \hat{ j }-90 \hat{ k }$
$-30 \hat{ i }+32 \hat{ j }-9 \hat{ k }$
$-3.0 \hat{ i }+3.2 \hat{ j }-0.9 \hat{ k }$
चुम्बकीय क्षेत्र $\mathrm{B}$ में गतिमान एक आवेशित कण के वेग के घटक, $\mathrm{B}$ के अनुदिश और $\mathrm{B}$ के लम्बवत हैं। आवेशित कण का पथ होगा:
एक आवेशित कण $v$ वेग से $B$ चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान है। कण पर लगने वाला बल अधिकतम होगा जब
आयनो के द्रव्यमान मापने के लिए एक द्रव्यमान मापी स्पैक्ट्रोमीटर में आयनो को पहले वैद्युत विभव $V$ द्वारा त्वरित कर फिर चुम्बकीय क्षेत्र $B$ का प्रयोग कर $R$ त्रिज्या के अर्धवृत्तीय पथ पर चलाया जाता है। यदि $V$ और $B$ को नियत रखा जाए तो अनुपात (आयन पर आवेश/आयन का द्रव्यमान) समानुपाती होगा
समान गतिज ऊर्जा के ${H^ + },\,H{e^ + }$ तथा ${O^{ + + }}$ आयन एक ऐसे क्षेत्र से होकर गुजरते हैं जहाँ एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र $B$ आयन के वेग के लम्बवत् हैं। आयन ${H^ + },\,H{e^ + }$ तथा ${O^{ + + }}$ के द्रव्यमान क्रमश: $1:4:16 $ के अनुपात में है। परिणामस्वरुप
एक समरुप विद्युत क्षेत्र तथा समरुप चुम्बकीय क्षेत्र एक ही दिशा में उत्पन्न किये गये हैं। उसी दिशा में एक इलेक्ट्रॉन को प्रक्षेपित किया जाता है, तो